संस्कृत विभाग

डी0बी0एस0 महाविद्यालय की स्थापना के साथ ही संस्कृत विभाग की स्थापना वर्श 1959 में हुयी। विभाग का अतीत अतिषय गौरवपूर्ण रहा है। यहाॅ संस्कृत विशय के सम्पूर्ण अध्ययन की सुचारू व्यवस्था रही है। विभाग पठन-पाठन, षोध एवं निबन्ध लेखक, काव्य पाठ, प्रष्नोत्तरी, ष्लोक वाचन आदि अनेक प्रकार की गतिविधियों के लिये सम्पूर्ण विष्वविद्यालय में विख्यात रहा है। संस्कृत विभाग के प्रथम अध्यक्ष डाॅ0 दयाषंकर षास्त्री जी थे। वे व्याकरण, दर्षन एवं साहित्य के उद्भट् विद्वान रहे हैं। उन्होंने अनवरत कठिन परिश्रम, अध्ययन-अध्यापन एवं षोध कार्य द्वारा विभाग को विषेश रूप से गौरवान्वित किया। संस्कृत की उल्लेखनीय सेवा करते हुये डाॅ0 दयाषंकर त्रिपाठी जी 30 जून, 1994 को सेवानिवृत्त हो गये। उनकी सेवानिवृत्ति के पष्चात डाॅ0 रेखा जौहरी ने विभाग के अध्यक्ष पद को सुषोभित किया। उनके समय इस विभाग में परास्नातक कक्षायें प्रारम्भ हुयीं। परास्नातक होने के कारण विभाग में छात्र-छात्राओं की संख्या में अतिषय वृद्धि हुयी। विभागाध्यक्ष की श्रृंखला में डाॅ0 जौहरी के पश्चात डाॅ0 षिव प्रसाद अग्निहोत्री जी ने विभाग के अध्यक्ष पद को सुषोभित किया। वे व्याकरण षास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान रहे हैं।

वर्तमान में प्रो0 प्रीति राठौर अध्यक्ष पद के दायित्वों का निर्वहन करते हुये संस्कृत विभाग का प्रचार एवं प्रसार कर विभाग को महिमा मण्डित कर रही हैं। विभाग में एसोसिएट प्रो0 डाॅ0 प्रत्यूश वत्सला हैं जिन्होंने अपने अथक् प्रयासों से विभाग के गौरव को बढ़ाया है।

संस्कृत विभाग द्वारा विगत वर्शों में कई राश्ट्रीय संगोश्ठियों का आयोजन किया गया है। विद्यार्थियों में बौद्धिक विकास हेतु षैक्षणिक भ्रमण आदि कार्यक्रम भी संचालित किये गये हैं। विभाग में समृद्ध पुस्तकालय है जो परास्नातक छात्र-छात्राओं के लिये लघु षोध प्रबन्ध एवं षोध कार्य करने में महती भूमिका का निर्वहन करता है। साथ-साथ यहाॅ ऐसी पुस्तकें भी उपलब्ध हैं जिसके अध्ययन से छात्र एवं छात्रायें लाभान्चित होकर अपना सर्वांगीण विकास करते हैं।

संस्कृत विभाग में एकेडमिक उपलब्ध्यिों एवं षोध कार्य में निरन्तर वृद्धि हो रही है। विभाग में लगभग 100 से भी अधिक राश्ट्रीय एवं अन्तर्राश्ट्रीय षोध पत्रिकाओं में षोध पत्र प्रकाषित हो चुके हैं। विष्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत 04 लघुषोध परियोजनायें भी विभाग द्वारा पूर्ण हो चुकी हैं। विभाग के षिक्षिकाओं द्वारा 31 पुस्तकें प्रकाषित हुयी है जिसमें चार पुस्तकों को उत्तर प्रदेष संस्कृत संस्थान द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है जिसमें षिक्षिकाओं को 11 हजार रूपये की धनराषि भी प्रदान की गयी। चारों पुस्तकों के नाम क्रमषः इस प्रकार हैं – ‘‘उत्तर रामचरितम्’’, ‘‘भारतीय संस्कृति में कर्मयोग’’, ‘‘महाभारत के योग विज्ञान की समीक्षा’’, याज्ञवल्क्यकृत रामायण का सांस्कृतिक अनुषीलन’’। लगभग 104 राश्ट्रीय एवं अन्तर्राश्ट्रीय संगोश्ठियों में सहभागिता एवं षोध पत्र प्रस्तुत किया गया। समय-समय पर विभाग के षिक्षकों को विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। विभाग में विभिन्न विशयों पर षोध छात्रों को षोध कार्य भी कराया जा रहा है। विभाग के षिक्षको द्वारा राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 के आलोक में संस्कृत विशय में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को भी विभाग में लागू कर छात्रों को रोजगार परक षिक्षा के लिये उत्प्रेरित किया जा रहा है।

(प्रो0 प्रीति राठौर)
विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग
डी0बी0एस0 काॅलेज, कानपुर

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